जनमे से आन्हर

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तपेसा आ संकर दुनू जना एके गाँव के. दुनू जना जनमे से आन्हर. एकदिन संकर बाजार से घरे जात रहलें आ तपेसा घर से बाजारे आवत रहलें. आवे- जाए के कवनो चाकर सड़क ना रहे. खेतन का डाँड़ पर लो का आवत- जात रास्ता लागि गइल रहे. दुनू जना रहे लो त आन्हर, बाकिर कहीं आवे- जाए में ओ लो का परसानी ना होखे.
खैर, दुनू जना दू दिसा से ओही डाँड़वाला रास्ता पर चलल जात रहे लो, लाठी से टोवत-टावत. दुनू जना का अनजाद ना लागल आ ठाँइ दे लड़ि गइल लो. हड़ाहे डिबी लड़ि गइल. तपेसा कपार ध के बइठि गइलें आ लगलें गरिआवे-‘ कवन ह रे ससुरा? तोरा आँखि में काचा फूटल बा का रे? हम त आन्हरे बानीं, तेहूँ अन्हराइल बाड़े का?’ कपार दुनू हाथे दबले आ निखिदिन गारी देत तपेसा सवालो पूछत जासु.
संकर बोली सुनिके तपेसा के चीन्हि गइलें आ अलगे ठाढ़ होके कहलें-‘हँ, ए काका, हमरा काचा फूटल बा. हम हईं संकर.’
‘आ दुर्र ससुरा ते नाहीं, तेहीं हउवे? जो- जो, जो गति तोरा, सो गति मोरा. का कइल जाई? भगवाने हमनीं के ए लाएक बना दिहलें. जो, घरे नू जातारे?’- तपेसा कहलें.
संकर कहलें कि हँ, घरहीं जातानीं.
जब संकर जाए लगलें त फेरू से उनके रोकि के तपेसा कहलें-‘ ए संकरवा, ई बाति हमहीं आ तें जानीं जा. दोसरा जगह मति कहिहे. ना त, गाँव भर के मिलिजुलि के रिगावल सुरू क दीहें सन. अबे त एहीं तरे हँसी उड़ावे खातिर हमनिए बानीं जा.’ कहत- कहत तपेसा के गर बन्हाए लागल.

#संगीत सुभाष