ताल – गाल

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‘असों बसंतपंचिमी के त जोरदार ताल बाजल ए फुलेसर भाई!’
‘हँ बाबू भुवर, ताल त बाजल।’
‘ताल का साथे झाल आ नाल। हँ त जोरदार फगुआ भइल। पुरनियाँ लो कहत रहल ह कि फगुआ आ फउदारी एक्के ह। मने फगुआ गाईं त पूरा दम लगाईं। कम सुर में फगुआ भइल कि मजा किरकिरा। असों सबलोग पूरा दम लगा के गावल। बिना भोंपा के गाँव भर सुनाइल होई।’
‘सहिए कहलS ए भुवर। ऊ त कइसे- कइसे ए साल लरिका सुरिया गइलेहँसँ। ना त, कइ बरिस से कहाँ ताल बाजत रहल ह? ताल, झाल आ नाल के बात त केहू बतिआवते नइखे। अब त खाली गाल बाजता।’
‘गाल बजला के माने?’
‘लS, अब इहे तू ना बुझलS? नव जानेलS आ छव ना जानेलS? गाल अंतरराष्ट्रीय बाजा भइल बा। गाल बजवला से के बँचल बा हो? चोरनी होइहे त गलगर होइहे, ई त मसहूर कहाउत ह। ना कुछ आवे त गाल बजावल सुरू क दS। सभे त गाले बजावता, कहीं सुनि लS। लरिका बाप से, मरद मेहरारू से, मेहरारु मरद से, सासु पतोहि से, पतोहि सासु से। गालबजावन जीव सब जगह मिलि जइहें। नेता लो जनता का सोझा गाल बजावत पाँच बरिस काटि लेता। नेता बनला के पहिला सरत बा, गाल बजावल। जनता अपुसे में जाति- बिरादर, अबरन-सबरन, हिन्नू- मुसुलमान, ऊँच-नीच कहि-कहि के गाल बजावता। पाकिस्तान, जवना का खइला पर आफत बा, चउबीसो घंटा गाल बजा के भारत के बरबाद करे का जोगाड़ में रहता। ऊ त ई कहS कि पूरा दुनियाँ जानि गइलि बिया कि ई खाली गाल बजावेला। गाल बजवला का अलावा एकरा लग दूसर कुछ नइखे। मने, ई समुझS कि बादनकला में सबसे ऊपर आजु गालबादन बा। जे जेतने गालबजावन बा, ओतने सफल बा। नाचे- कूदे तूरे तान, ओकर दुनियाँ राखे मान। गाल ना बाजी त वोकील साहेब लो कउड़ी के तीन हो जाई। लोअर कोट से ले के सुपिरिम कोट ले तरक- दलील भाँड़ में झोंकि के खाली गाल बजावल जाता। ए गालबादनन का आगे सब बोलतू लोग के गर बइठि गइल बा। केहू खलिहे गाल बजावता त केहू भोंपा लगा के बजावता। केहू पद खातिर बजावता, केहू पइसा खातिर बजावता। केहू पिये खातिर बजावता, केहू जिये खातिर बजावता। केहू चमचई में बजावता त केहू मलिकई में बजावता। केहू पिटि के बजावता, केहू पिटा के बजावता। केतना ले कहीं। हम त तहरो के कहबि कि ई महटरी छोड़S आ गालबादन सीखि लS। कवनो चीज के कमी ना होई। तनी रियाज क लS आ टीबी पर गाल बजावल शुरू क दS। तब देखS तमाशा। रियाज ए से कि उहाँ एक से एक गालबादक बाड़ें। कवनो तरक के गरज नइखे, बस आगो-मागो, भूत भागो, आगि लागो चिल्लात रहS। गाल बजा के अपने देश के टुकड़ा- टुकड़ा करेवाला लोग हीरो बनि गइल बा। फरजील किममवा त आसाम आ पूरबारी दिशा के देश से काटिए देबे खातिर गाल बजावता। त गाल बजवला पर कवनो रोक नइखे। गाल बाजत रही, हाल कइसनो होखे।’
‘केतना बोलेलS, ए फुलेसर भाई। तुहूँ त तब्बे से गाले बजावतारS?’
‘देखS भुवर! हम मानतानीं कि हमहूँ गाल बजावतानीं। लेकिन, हमरा बजवला में अउर लो का गाल बजवला में जरि आ पुलुईं के अन्तर बा। अउर लोग स्वार्थ में गाल बजावता, हम दरदे गाल बजावतानीं। ए गालबादन में हमार (माने फुलेसर के) बात नक्कारखाना में तूती की आवाज जइसन भइल बा। हमार केहू सुननिहार नइखे। सभका कान में रूई ठुसाइल बा। ऊ लोग बहिर हो गइल बा कि बहिर भइला के नाटक करता, हम नइखीं कहि सकत। ए से ई गालबादन अब तनिको सोहात नइखे। ई होरी के मीठ राग पर साँझे- बिहाने चिग्घार के मरीचा छिरिक के तीत बना देबे का जुगुत में बा।’
‘बात त ठीके कहलS। लेकिन, अबहूँ अपना गाँव में हमरा- तहरा जइसन बहुते लोग बा जे गाल का जाल में ना फँसी आ साल- साल, हर हाल में बसंतपंचिमी के ताल ठोकि के गावत रही- ‘सदा अनन्द रहे एहि द्वारे, मोहन खेले होरी। अपना गाँवे झाल आ नाल का साथे ताल बाजी, गाल ना।’

संगीत सुभाष

✍संगीत सुभाष,
मुसहरी, गोपालगंज।