पता ना दूर कतिना आशना बा

0
594

फिजाँ में फिर तनिक करुआपना बा।
चनरमा भिर बड़ी धूंधर घना बा।
जुगाली कर रहैं बादर-हिरन कुछ
हवा के पाँव धीमा अनमना बा।

गिरल हा झाग अस पैरत जमीं पऽ,
बिरछ के चूल पर भारीपना बा।
कहीं अस्फुट विनय के लय सुनाता,
विजन में गुम रहल आराधना बा।

पलक पर नीन के टुकड़ा अलस भर,
नयन में झाँकि के उतरल मना बा।
बदन संवेग से बोझल थिराइल,
बिलम के फर्फरी फिर काँपना बा।

पता ना भोर कतिना देर बाटे,
पता ना दूर कतिना आशना बा।

दिनेश पाण्डेय
पटना, बिहार