बसन्ती दोहा

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बासंती दोहा (भोजपुरी)

इरिखा, कपट, कुटिलपना, भरल हिए कंजास।
ना स्वागत नवपुष्प के, समुझी का मधुमास?

अगराइल गोरी चले, पगलाइल श्रीमंत।
लागत बा ए गाँव में, आइल हवे बसंत।

ई के चुपके आइ के, धइल धरा पर पाँव?
ठूँठ गाछि पनके लगल, फूलन मँहकल गाँव।

हरियर पतई देखि के, जसन मनावे मूल।
आजु सुफल धरती धइल, खिलल हजारन फूल।

सँगहीं काँट गुलाब के, बिन कवनो तकरार।
संकट देखत फूल पर, काँट होत रखवार।

पिय मउसम दुनहून के, एक्के नाँव बसंत।
नाँव धरत अखियाँ झुके, सैन बुझे ना कंत।

संगीत सुभाष,
प्रधान सम्पादक- “सिरिजन”, भोजपुरी पत्रिका।
मुसेहरी बाजार, गोपालगंज, बिहार।
“जय भोजपुरी-जय भोजपुरिया”