भोजपुरी सबद संपद – भाग-७

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जरि- [सं-जड़] पादप मूल।
जर- [सं-ज्वर] बुखार।
दीठ/डीठ- [सं- दृष्टि] नजर।
दोख- [सं- दोष] कमी, अवगुन, विकार, अपराध।
दुचित- [सं- द्विचित्त] अथिर चित्त, दोपापाही।
धनिया – [सं- धन्या] पत्नी।
कनिया- [सं- कनीया] नवकी बहुरिया, छोट बहु।
कनयाँ- [सं- कन्या] कुवाँरी, पुत्री।
बनयाँ- [सं- वन्या] जंगली, अनियंत्रित
लइकिन/स्त्री बदे प्रयुक्त सब्द।
पइठ- [सं- प्रविष्ट] पहुँच, प्रवेश।
पनही- [सं- उपानह]जूता।
पहरू- [सं- प्रहरी ]पहरेदार।
पसेव- [सं- प्रस्रव] पसेना, रिस के बहेवाला तरल।
परोजन- [सं- प्रयोजन] हेतु, उद्देश्य, व्यवहार।
पुरवा साख- [सं- पूर्वसाक्ष्य] अगते के प्रमाण।
पुरहथ- [सं- पूर्वहस्त] पूजा के पहिले हाथ में
लिहल अछत आदि।
पुलुँई/पुलुई- [सं- पल्लवी] कोमल पतई।
पुहुत- [फा- पुश्त] पीढ़ी।
बिख- [सं- विष]जहर।
बाथा/बिथा- [सं-व्यथा] पीड़ा, तकलीफ ।

✍दिनेश पाण्डेय, पटना, बिहार