मोबाइल

0
675

‘ए भाई! चलऽ घरे। माई के तबियत खराब बा।’- मोबाइल पर कुछ लिखत चमन से उनुके छोट भाई अमन कहलें।
‘त का हो गइल? तबियत त केहू के खराब होला। बाबूजी बड़लें बाड़ें, कहि दS दवाई ले आ देसु।- मोबाइल पर आँखि धसवले चमन कहलें।
‘आरे, तबियत जोर से खराब बा। बाबूजी रोवत रहलें हँ। तू जल्दी चलऽ।’- अमन कहलें।
‘अब जइबऽ कि कसि दीं, दू चटकन? तबियत खराब बा त डाकडर बोला ल सन। हम जा के का करबि?’- चमन तनिका सा मोबाइल पर से नजर हटाके अमन पर गुरना के ताकत कहलें।
अमन डेराके घर का ओर भगलें। दू मिनट बाद फिनु लवटलें आ कहलें- ‘माई के बोली बन हो गइल बा, जल्दी चलऽ।’
‘बोली बन हो गइल बा त का हो गइल, अबे मुअल नइखे नू? मरि जाई त कहिहS भा तू चलS, हम आवतानीं।’- चमन कहलें त अमन लवटि गइलें।
चमन काहे के घरे जासु? फिनु मोबाइल में अझुरा गइलें। थोरे देर बाद अमन रोवत अइलें आ कहलें- ‘भाई हो! माई मरि गइल।’
चमन के हाथ मोबाइल पर तनिका भर रूकल आ कहलें- ‘आँ, माई मरि गइलि? अच्छा अब माई मरिए गइलि त हम जा के का करबि? हम भगवान त हईं ना कि जिआ देबि? तू जा आ कहि दिहS बाबूजी से, सब इन्तजाम क के ले आवो लो। आखिर जाई लो त इहे रहतवा नू? हम एहिजा बानीं, साथे चलि देब। हई वाट्सएप पर बड़ा जरूरी आ नीमन चैट चलता। इहाँ ले आई लो तले ओरा गइल रही। जा, बाबू जा। तनी हमके ई काम क लेबे दऽ। एने से जाई लो त हम जरूर कान्ह लगा देब। आखिर, माई रहलि ह।’
एतना सुनत अमन का देह में आगि लाग गइल आ चमन के मूड़ी के बार ध के लगलें गाले पर चटकन गिरावे। अचानक अइसन पिटइला के उमेद चमन का रहे ना। अमन पटकि के लातन- मुक्कन उनुके धुनि दिहलें। मोबाइल छीनिके ईंटा से कूँचिके हजारन टुकी क दिहलें। कालर पकड़लें आ घिंसिआवत दुआर पर ले गइलें। कहलें कि देखु हई, जवना माई के गहना चोरी क के बेंच दिहले आ मोबाइल किनले ऊ माई हइहे ह। मुअल परलि बिया। मोबाइल का चलते तोरा माई का मुए के बेरा ले फुरसत नइखे। खबरदार, जो हमरी मुअला माई के छुवले त! तें चलाउ वाट्सप, फेसबुक, ट्वीटर, इन्स्टाग्राम भा अउर कुछ। अब कहियो केहू बरजी ना।
चमन कबो अमन त कबो माई की मुअला देंह का ओर ताकते रहि गइलें। आँखिन से लोर गिरे लागल। पता ना, मोबाइल फुटला का चलते, पिटइला का चलते कि माई का मुअला का चलते।


✍️संगीत सुभाष,
प्रधान सम्पादक, सिरिजन भोजपुरी ई-पत्रिका
मुसेहरी बाजार, गोपालगंज।