एगो गुमनाम चिठ्ठी

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पता त ठीक बा, लेकिन चिट्ठी गुमनाम आईल बा ।
ई चिट्ठी पढी के लागत बा कोई कोहराम आईल बा ।।

लिखल बा, आइना मे तू तनी आपन सूरत देख ।
की केतना दाग तोहरा मे बा, लीखल इल्जाम आईल बा।।

शरीरिया तू लुटवल खूब जाके बदनाम गलियन में ।
जवन कईल करम देख ओकर ईनाम आईल बा ।।

कवन कुकर्म ना कईल बता द तू जिनिगिया में ।
मरे के बेर जिभिया पर काहें के राम आईल बा ।।

देखे के आश बा हमरो तोहार तड़पल नजारा के ।
चिता पर सूत के केतना तोके आराम आईल बा ।।

लिखल बा खून से, देख वफा आंसू इ लोगन के ।
कलम के नोक से काहे मुहब्बत नाम आईल बा ।।

बितवल तू जिनिगिया के बहुत ही शान-शौकत से ।
बता द गैर कवन बा जेकर ई जाम आईल बा ।।

बुता के उजाला के डूबा देल “महेन्दर” के ।
लगवल दाग अइसन की चांद बदनाम आईल बा ।।

## महेन्द्र पान्डेय ( शाकद्वीपीय)… धरनीपुर