कुण्डलियाँ

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कुण्डलियाँ

ना ना करते हाँ भइल , कइलस नजर कमाल ।
चुपके से दिल बेध के, हरस बजावे थाल ।।
हरस बजावे थाल, बिना डोरी से बन्हले ।
आइल अजब भुँइकँप , चले मन मउर पेन्हले ।।
जबले ना दीदार , आह ! दिन बीते भरते ।
अइली घर सरकार , ठुमक के ना ना करते ।।

जब पत्नी गुणवान हो , घर मंदिर बन जाय ।
सास ससुर परमातमा, घर हीं रोज पुजाय ।।
घर हीं रोज पुजाय , सुभाव सभ्यता आये ।
फैले नित सुविचार , हृदय प्रभु रूप समाये ।।
रूप क्षणिक ललचाय, देख सुन्दर जब सजनी ।
जिनिगी नरक समान, तान दे भौं जब पत्नी ।।

कइली गोरी रात दिन , पियवा से तकरार ।
बढ़ियाइल नैना नदी, लगल करेज कटार ।
लगल करेज कटार, काँट मुँह भरके गइली ।
चन्दन जइसन चान , चलाके मरली चइली ।।
तेहू पो बड़ भाग , पिया के चान चकोरी ।
दिहली नयन नचाय, घवाहिल कइली गोरी ।।

कन्हैया प्रसाद तिवारी “रसिक”