घनाक्षरी

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घनाक्षरी

दही दूध माठा रहे,
बाबा के चलाना में,
आजी कामकाजी रही,
घीव रहे भाँड़ में।
पापा के जबाना अब,
मम्मी मलिकाँव करे,
मथनी बेहुड़ी नाहिं,
गाय नाहिं सार में।
बबुआ के राज आइल,
तीसी ना केराव घरे,
कूदत बिया मुसुटी,
खलिहा बखार में।
जहिया से बनल बा,
गाँवे गाँवे रोड राह,
झोरा बोरा लेके जाली,
कनिया बाजार में।।

रहे ऊ जबाना एगो,
गदहा जिलेबी खाय,
नयका जबाना आजु,
मनई के भाव ना।
देहिया प जाकिट बा,
रोकड़ा ना पाकिट में,
बहरी में गैस मारे,
भीतरी न ताव बा।
दिने राति डंडी मारे,
माला पेन्हे कंठी पेन्हे,
जय सियाराम बोले,
चोरी से लगाव बा।
हवा चले पुरुवा तऽ,
हया उधियाइल जा,
साफ पहनावा बाटे,
गंदा बरताव बा।।

अमरेन्द्र कुमार सिंह,
आरा, भोजपुर, बिहार।