तोटक

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जब से अइली कनिया घर में।
तब से बबुआ रहता डर में।।
सुनिना कि कबो कत ना टकसे।
घर भीतर से अब ना निकसे।।

पितु मातु घरे नहि बात करे।
न कबो उनसे मुलकात करे।।
धनि नीर धरे निज बोतल में।
जलपान करे नित होटल में।।

मुहचोर पिया चतुरी सजनी।
घर भीतर में बजना बजनी।।
दिन नीर भरे निशि नीर बहे।
सभ काम करे अरु पीर सहे।।

झगरा नखरा करती घरनी।
सजना दुअरा अँगना बढ़नी।।
बबुआ नयना अब लोर झरे।
सजनी सजि के बरजोर करे।।

✍️ अमरेन्द्र सिंह,
सह सम्पादक- सिरिजन,
आरा, भोजपुर, बिहार।