भोजपुरी आ देवनागरी लिपि

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भोजपुरी आ देवनागरी लिपि

आज दुनिया भर में लमसम अढ़ाई हजार बोली – भाषा बोलल – सुनल आ लिखल – पढ़ल जाला। जवना में डेढ़ हजार के हिसदारी भारते का बोली – भासा के बा। ओइसहीं आज सउँसे दुनिया के बोली – भासा खातिर बीसे गो लिपि के बेवहार होला जवना में अरबी के छोड़ के दस गो लिपि भारते के बा। भारत के दसो लिपि बा – देवनागरी, गुजराती, पंजाबी, बंगला, असमिया, उड़िया, तमिल, मलयालम, कन्नड़ आ तेलगु । जागरूक भोजपुरिया जन के बेवहार के चलते एह सब में देवनागरी के चलती जादे बा। बतावल जाला जे ई देवनागरी लिपि ब्राह्मी लिपि के पनका भा पचकी रूप में पनकल बा। ब्राह्मी लिपि के नामधराई- संस्कार भारत के पढ़ल-लिखल ग्यानी मतलब बुद्धि-बिद्या के दिसाईं समाज के अगिला पाँती में जमल ब्राह्मण लोग का बेवहार के आधार पर कइल गइल रहे। पहिले ब्राह्मणे लोग खातिर ‘ नागर ‘ सबद के चलन रहे आ एही नागर लोग लिखल ध्वनि-चिन्ह (लिपि) के ‘नागरी’ कहल गइल। अइसन मानल जाला कि एह नागरी लिपि के सिरजना मराठी भा गुजराती ब्राह्मण लोग कइल । बाकिर एगो आउर मजगूत मत बा कि एह लिपि के सिरखार देवनगरी कासी के भोजपुरिया पंडी जी लोग खींचल। एह से एकर नाम देवनगरी के आधार पर देवनागरी हो गइल।
मुगल काल में जब अरबी लिपि आ अरबी-फारसी भासा देस के जनता पर जबरन थोपाए लागल तब एह देस के सनातनी लोग एह देवनागरी लिपि के बेवहार कइल तेज कर दिहल। अंगरेजन के समय जब अंगरेजी आ रोमन लिपि के अपनावे खातिर दबाव बढ़ल आ देवनागरी लिपि के सामने खतरा पैदा होखे लागल तब एकरा के बचावे-बढ़ावे खातिर देवनगरी कासी के भोजपुरी भासी ब्राह्मण पं. रविदत्त शुक्ल सन् १८८४ ई. में ‘ देवाक्षर चरित ‘ आ पं. राम गरीब चौबे सन् १८८५ ई. में ‘नागरी विलाप’ नाटक लिख के एकर प्रचार-प्रसार के अभियान चलवलें। फेर कासी-बनारस के क्वीन्स कॉलेज के तीन भोजपुरी भासी बिद्यार्थी श्याम सुन्दर दास, राम नारायण मिसिर आ शिवकुमार सिंह मिल के १६ जुलाई, सन् १८९३ ई. में देवनगरी कासी में ‘ नागरी प्रचारिणी सभा ‘ के अस्थापना कइलें। एकरा बाद भोजपुर के मुख्यालय आरा में नागरी प्रचारिणी सभा के गठन भइल। फेर उत्तर भारत के कई हिस्सन में नागरी प्रचारिणी सभा के गठन होत गइल।
कहे के मतलब ई बा कि देवनागरी लिपि के खोज आ बेवहार सबसे पहिले भोजपुरी भासी इलाका में भोजपुरिया लोग के जरिये भइल। जहिया भासा खातिर ‘हिन्दी’ सबद के खोज आ बेवहारो ना होत रहे ओहू से बहुत पहिले से भोजपुरी, अवधी, ब्रजबुलि , मगही, संस्कृत, नेपाली, मराठी, राजस्थानी, संथाली बगैरह भासा खातिर एह देवनागरी लिपि के बेवहार होत रहे आ आजुओ होता। एतना भासा खातिर बेवहार होत देवनागरी लिपि के लोकप्रियता के देख के बाद में हिन्दी खातिर एकर बेवहार होखे लागल।
अइसे भोजपुरी खातिर देवनागरी लिपि के अलावे कैथियो लिपि के बेवहार खूब होत रहे। एकरा के कुछ लोग गुप्त साम्राज्य काल के सिरजल गुप्त लिपि कहेला त कुछ मौर्य साम्राज्य काल के कौटिल्य के सिरजल कुटिल लिपि बतावेला, जवना के रचना कश्मीर के शारदा लिपि के आधार पर कइल गइल रहे। कैथी लिपि तेजी से लिखाए वाला लिपि रहे। एह से एकरा त्वरा लिपि कहल गइल। एकरा में शिरोरेखा आ खाड़ रेखा के चिन्ह ना मिले।संजुक्ताक्षर हइये नइखे। इ आ ई खातिर एके गो चिन्ह बा। ण चिन्ह के बेवहार नइखे आ श अउर ष खातिर स के बेवहार बा। ई बिसर्गहीन लिपि ह। एह लिपि के खोज भोजपुरी भासा के ध्वनि प्रक‌ति के ध्यान में रख के कइल गइल रहे। बाकिर जइसे-जइसे भोजपुरी भासा में ध्वनियन के उचारे के कोटि बढ़त गइल, ओइसे-ओइसे कैथी लिपि आपन हाथ खड़ा करत चल गइल आ ओकर जगह देवनागरी लेत चल गइल। अइसे भोजपुरी ध्वनि उचार के दिसाईं बहुत जगह देवनागरियो लिपि कमजोर नजर आवेला।

डॉ. जयकान्त सिंह’जय’