भोजपुरी सबद संपद – भाग-२

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आजु के सबद
(चिंतन चालू आहे-२)

रवा- छोट टुकड़ा, कण, दाना।
रवों- भोजपुरी संबोधन, हलो जइसन।
जादे औरत लोग प्रयोग करेला। प्राचीन
‘आर्यन’ से व्युत्पन्न मानल गइल बा ।
रोआँ- रोम, देह के बाल।
रस- स्वाद, आनंद, तरल पदार्थ।
रसा- शोरबा, सब्जी आदि के सूप।
रसे-रसे- धीरे-धीरे।
रसरी- रस्सी, डोरी।
रान- जाँघ।
रान्हल- पकावल
बबर- शेर के एक प्रजाति। बर्बर।
बबरी- जुल्फ।
ढब- आदत, ढंग, गढ़न।
ढब-ढब- ढोलक आदि प चोट से
निकलल आवाज।
ढबुआ- ताम्बा के पइसा–“बबुआ हो
बबुआ, लाल-लाल ढबुआ।”खेत के
मचान के छाजन।
ढबहरिया- नदी के किनारे रहेवाला।
ढाब- पानी में डूबल खेत
ढाबा- सड़क किनारे के होटल। ओसारा।
डीर- लकीर।
डील- कद, देह के गठन, टीला।
डोल- बाल्टी।
डोलडाल- शौच गइल, दिशा फिराकत

✍ दिनेश पाण्डेय, पटना, बिहार