भोजपुरी सबद संपद – भाग-४

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खिंचड़ी- (सं- कृषरिका) खिचड़ी।
भछनी- (सं- भक्षिणी) खा जाएवाली। औरतन
द्वारा प्रयुक्त गारी।
पोखरा- (सं- पुष्कर) जलाशय।
गाँहक- (सं- ग्राहक) खरीददार।
पगहा- (सं- प्रग्रह) गोरू बान्हे के डोरी।
मकुना- (सं- मत्कुण)बिना दाँत के हाथी।
खंता- (सं- खनित्र)जमीन खने के औजार।
(सं- खनित) खनल गड़्हा।
मुँगरा- (सं- मुद्गर) पहलवानी के उपकरण।
अनाज भा सरिस चीज थूरे के
उपकरण।
माछी- (सं- मक्षिका)मक्खी।
बीछी- (सं- वृश्चिक) बिच्छू।
टाङ्- (सं- टङ्ग) टङ्गरी, पैर।
टाङ्गी- (सं- टङक:)लकड़ी काटे के औजार।
घिङ्गर(ड़)- (सं- डिङ्गर) सेवक।बदमाश।
पतित।
डुमकच- (सं- डिम् से व्युत्पन्न)नाटक के एक
प्रकार।बारात प्रस्थान के रात औरतन
द्वारा रचित स्वांग।
तपसी- (सं- तपस्विन) तपस्या करेवाला।
पतुरिया- (सं- पात्री) रंडी (अर्थापकर्ष से)
टुँइआँ- (सं- तुण्डिका) माटी के टोंटीदार पात्र।
अटारी- (सं- अट्टालिका)घर के ऊपरी खंड के
कोठरी।
सुरुख- (अरबी- सुर्ख) लाल।
जरद- (अरबी- जर्द) पीला।

✍दिनेश पाण्डेय, पटना, बिहार