मधुमोदक छन्द में कविता

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*बसंत__बिरह*
*मधुमोदक छंद*
*211 211 211 22*

राग वसंत तरे तर लेसे।
फागुन का जब कंत विदेसे।।

पी पिय चातक कानन बोले।
काम हिया रति भीतर घोले।
भेजत साजन तार न पाती-
कामवती घर-वास अनेसे।

फागुन मास बहे पुरवाई।
सूखल लोल कपोल ललाई।
रोअत नैनन नीर झुराये।
साम बिना धनि पागल भेसे।।

डारन काँच कली खिलि आई।
मीठ पराग हवा महकाई।
अंतस बेदन जी हहराई-
बीतत माघ ऋतु कष्ट कलेसे।।

बागन कोकिल कूहु सुनाई।
कायिक दुःख नहीं सहि जाई।
चूसत षट्पद फूल कियारी-
पूछत पीय बसे कत देसे।।

अमरेन्द्र कुमार सिंह
आरा