रहि रहि हिय अकुलात

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रहि रहि हिय अकुलात,
परल मन मनमीता के बात।

मूरति सूरति अँखियाँ चमकत
सँवरल केश भाल अति दमकत
मँहमँह मँहकत गात।

सहमत राखत पाँव धरनि पर
सकुचत बोलत बयन मृदुल स्वर
मन्द मन्द मुसकात।

परसल फूल कि तन के परसल
मनहर मधुकर मन के निरमल
देत नेह सौगात।

आवत उदित सलोना हिमकर
जात सून दिशि गाँव बीथि घर
नैनन से बरसात।

संगीत सुभाष

✍संगीत सुभाष,
मुसहरी, गोपालगंज।