सगरो झुरा के वीरान हो गइल

0
628

?भोजपुरी कविता ?
********************
फूल सा परिवार सजल रहे प्यार से,
आज सगरो झुरा के वीरान हो गइल।
सभ्यता, सुख स्वारथ में सब बरबाद बा,
साँच सपना झूठ सभके ईमान हो गइल।

जे मरद दुख – दरद सभके टारत रहे,
नेक नीयत ओहू के बेइमान हो गइल।
जवना औरत पर गरब सब दुनियाँ करे,
आज उहो धरम से अनजान हो गइल।

बेटा- बेटी के असरा माई -बाप के रहे,
उहे जिनिगी में जोखिम तूफान हो गइल।
भाई – भाई के रिश्ता रतन सा रहे,
उहे मुदई अजब शैतान हो गइल।

कबो नेता चहेता सभका दिल में बसे,
आज उहे देखी दुइजी के चान हो गइल।
जगत गुरु पद सुन्दर मास्टर के बनल,
शिक्षके से शिक्षा लहुलूहान हो गइल।

अब समझदार सज्जन के मोल कहाँ बा,
लोग बिगडा़, बवाली महान हो गइल।
कबो बोली में सभका झरत रहे फूल,
चारु ओर आजु कडुआ जुबान हो गइल।

भूलल करम – धरम सब भक्ति -भरम,
आज पइसे सभकर भगवान हो गइल।
अइसन कलि के कमाल बा “कवि बाबूराम ”
निन्दा सुने बदे सभके आगे कान हो गइल।


बाबूराम सिंह कवि
ग्राम -बड़का खुटहाँ, पोस्ट -विजयीपुर (भरपुरवा)
जिला -गोपालगंज (बिहार)