अकेले चलि अइहऽ ए साँवरिया

0
687

मन भरमवले बाटे माया के बजरिया ।
अकेले चलि अइहऽ ए साँवरिया ।।

सत के सुमारग सरम लागे चले में ।
नींक लागे काया पो कुंदन के मले में ।।
अंटकल बाटे मन सतरंग अटरिया ।।
अकेले •••• ।।

नैना के नीर से नहात बानी रोजे।
थक गइनीं अब हम कहाँ जाईं खोजे ।।
उठतारे पोरे पोर पीर के लहरिया ।।
अकेले  ••••• ।।

हीत मीत प्रीत के पहाड़ा ना सिखावेला ।
अपनो जमलका जगह ना बतावेला ।।
कइसे होई जिनिगी में बोलऽ भोरहरिया ।।
अकेले  ••••• ।।

कन्हैया प्रसाद रसिक