पिया हूक हिय में उठे , देह न माने बात ।
तिय सतवंती गाँव के, झेले सइ-सइ घात ।।
तोहरे खातिर ए धनी, काम करीं दिन रात ।
रितु बसंत पूछी कबो, कहिहऽ दिल के बात ।।
दूर देश साजन बसे, तिय रहनी ससुरार।
सास-ससुर सउदा-सुलुफ, गरू गोठ गरुआर ।।
महुआ कुचिआइल भले, मोजर चढ़ल खुमार ।
अमराई तनहा लगे, मन में उठे गुबार ।।
ए मन तनिका चेत जा , आइल बा मधुमास ।
सिहरावन सन-सन चली, बैरिनिया के साँस ।।
रहब ब्यस्त आठो पहर, तन के बढ़ी न ताप ।
मन से रउरे नाम के, करत रहब हम जाप ।।
कोइल कागा कान में, कहे बात कुछ कंत ।
मन के बन्हली खूँट से, उफ्फर परस बसंत ।।
~ कन्हैया प्रसाद रसिक ~