अंजन जी स्वभाव से जितना मिलनसार, हंसमुख अउरी सहज रहनीं, उतने सहज रहे उहाँ क लेखनी । कहीं कवनो क्लिष्टता नइखे , बनावट नइखे। उहाँ के गीत कविता पारदर्शी रहे। जइसे साफ़ जल के अंजुरी में लेके ओमा झँकला प खुद क हथेली अउरी ओकर रेखा साफ़ लउकेला, ओही तरह जे भी अंजन जी के पढ़ले बा ओके जरूर ई अनुभव भइल होखी । उहाँ के गीत कविता में समकालीन भारतीय समाज, खासकर ग्राम्य जीवन क भाग्य रेखा साफ लउकेला । अंजन जी अपना रचना में एतना सरल, सपाट अउरी सहज रहनीं कि कमो पढ़ल लिखल आदमी के भी समझे में कवनो दिक्कत ना होला । अंजन जी क कविता में अक्खड़पन बा, गहराई बा अउरी आज के समाज पर करारा व्यंग्य भी। अंजन जी क आज पाँचवीं पुण्यतिथि ह, आजु के दिन उहाँ के एह धरा धाम के मोह छोड़ के बैकुंठ चल गइनी । कुछ चुनल श्रद्धांजलि रउरा सोझा बा :
(?शशिरंजन शुक्ल “सेतु” क महामना राधामोहन चौबे “अंजन” जी के पांचवी पुन्यथिति पर भावभीनी श्रद्धांजलि? )
अपना लोकप्रिय गीतन से भोजपुरी के कोठिला भरे वाला अंजन जी के सश्रद्ध नमन… वन्दन??
गुरु पद रज मृदु मंजुल अंजन।
नयन अमिअ दृग दोष बिभंजन॥
भवभय भंजक, विमल रामचरित गावे से पहिले मङ्गलाचरण में गोसाईं बाबा सद्गुरु भगवान के महात्म्य बतावे का क्रम में गुरुजी की पाँइन क धूरि के उपमा ‘अंजन’ से कइले बानी। ‘अंजन’ के मधुर, मंजुल, आँखि के अमृत, दृष्टि दोष विभंजक बतवले बानी। मानस जी का एह चौपाई अस सुन्नर ‘अंजन’ के व्याख्या अउर कतहूँ नइखे भइल।
भोजपुरी साहित्य में महान गीतकार ‘अंजन’ जी के योगदान भी अपना नाम की अनुरूपे बा। ‘अंजन’ जी भोजपुरी का आँखि में रचल अंजन हईं। भारतीय चिंतन में मातृभाषा के महतारी के दर्जा दिहल बा। महतारी की अँचरा के मिठास अइसन ह कि ओकरा के पावे बदे देवता सब के मन भी ललचत रहेला। महतारी के दुलार पावे बदे ब्रह्मसत्ता भी राम, कृष्ण का रूप में धरा-धाम पर अवतरित होत रहल बा।
ठीक इहे हाल महतारी के बा। अपना कोरा में राम आ कृष्ण अस लरिका खेलावे बदे कौशिल्या आ यशोदाजी अस माई का बहुत कठिन तपेस्या करे के परेला। ओही तरे अपना अँगनइया में ‘अंजन’ जी अस लाल के खेलावे बदे भोजपुरी (महतारी) का कइसन तपस्या करे के परेला, एही भाव में आजु अंजन जी की पँचवा पुण्यतिथि पर हृदय के नमन निवेदित बा….
नेह का दीया में नौ-रस घीव से बतिहर भाव के बारेली माई
आँखि में राति बिताइ हिया हुलसाइ परइया निहारेली माई
बेकल होइ के सारदा गौरि गनेस महेस उचारेली माई
तब जा के कहीं कजरौटा में ‘अंजन’ जइसन रतन उतारेली माई
(कजरौटा से भाव सौभाग्य/साहित्य-कोष संवर्धन से बा)
शशिरंजन शुक्ल 'सेतु' ??????
( ?संगीत सुभाष जी क महामना राधामोहन चौबे “अंजन” जी के पांचवी पुन्यथिति पर भावभीनी श्रद्धांजलि? )
कविकुल शिरोमणि, भोजपुरी के भवभूति, मनीषी, चिंतक, नस-नस में सर्वधर्म समभाव आ भोजपुरी के अनेकन अमर गीतन के रचयिता महामना अंजन जी के आज पाँचवाँ प्रयाण दिवस ह।
आजु के दिन उहाँके इयाद करत हम भावविभोर बानीं। लेकिन, अंतरातमा में कहीं ना कहीं चट्टान जइसन बिसवास बा कि उहाँके आशीर्वाद अज्ञातलोक से सदईं अपना लोगन के मिलत रहेला।
ए नश्वर संसार में सबका गइल तय बा। अधिकांश लोग त रोवते जाला लेकिन, अंजन जी अपना गइला के महान उत्सव मनावत गइनीं। भरल-पूरल सुखी, शिक्षित आ सम्पन्न परिवार के परिवारीजन आ नजदीकी लोग के समुझावत- बुझावत आ सिखावत गइनीं। ए जगह के छोड़ला के तनिको मलाल ना रहे, मानो एकरा से दिव्य जगह पर परमात्मा का साथे राजसिंहासन मिलत होखे। उहाँके सगरे भौतिक इच्छाके पूरा करे के जवन प्रयास परिवार के लोग कइल, ऊ रिश्तन के निबाहे खातिर एगो बड़हन मिसाल बा।
अंजन जी सचहूँ अंजन रहनीं। आँखि के कोरन में तनकी भर लगा दीं- आँखि के सुन्दरता बढ़ि जाई आ आँखिन में अइसन रोशनी आई जवन जिनगी भर लवटिके वापस ना जाई। अंजन साहित्य से भोजपुरी आ हिन्दी के भंडार उहाँके रचल 38 गो किताबन से भरल बा आ सैकड़न किताबन भर के पाण्डुलिपि तेयार बा। अंजन का तरे ए धरोहर से एको लाइन के अंजन अपना मन की आँखिन का कोर पर लगवले जीवन सार्थक हो जाई, जिनिगी जिए के एगो नया अंदाज आ जाई। कवनो गाढ़ समय में होखीं, अंजन जी के एगो कवनो मुक्तक पढ़ि ली, कवनो ना कवनो राह मिलिए जाई।
अइसन व्यक्तित्व के सब साहित्य समाज का सोझा आवे, उहाँके परिवार आ जय भोजपुरी-जय भोजपुरिया परिवार प्रयास करि रहल बा। आशा बा, हमनीं का जरूर सफल होखबि जा। 18 नवम्बर 2018 के
अपना पहिलका भोजपुरी साहित्यिक आ सांसकृतिक महोत्सव के शुरूआत जय भोजपुरी-जय भोजपुरिया परिवार उहाँके चित्र पर माल्यार्पण आ नमन क के कइल। साथे- साथे उहाँके अर्द्धांगिनी पूजनीया माता जी के चरनवन्दनो भइल।
हमनीं का भगिमान बानीं कि उहाँ की रचनन के पढ़तानीं आ पढ़ि-पढ़िके सिखतानीं।
उहाँके विमल चरनन में बेरिबेरि माथा झुकावत मन कबो ना अघाइल। आजु फेर उहाँके प्रयाणदिवस पर अपना आ अपना परिवार जय भोजपुरी-जय भोजपुरिया का ओर से उहाँके नमन करत प्राथना करबि कि सगरे भोजपुरिया जगत के अपना आशीर्वाद का बरखा में भिजावत रहीं। हमनीं का त अंजन जी के अपनी आँखिन के अंजन बनवलहीं बानीं जा।
??
पढ़ीं अंजन जी के एगो अप्रकाशित रचना, जवन हमरा संग्रह में बा-
केतना दिन अउरी चलत रही चकरी।
कूटि-पीसि खा गइनीं जिनिगी के सगरी।
जोरत-अगोरत में थाती हेराइल
तनमन के गरमी सब देखते सेराइल
धार में चिन्हाइल ना, चलि अइनीं कगरी।
हेतना हमार हवे, हेतना ह राउर
सोचत-बिचारत भइल कुछु बाउर
थाकि गइल जांगर अब आगे का सपरी।
लीखि-लाख, कउड़ी-करोड़ के ई मेला
उसरि जाई मेला, जब होइबि अकेला
पुतरी का मिलि जाई, आखिर में उतरी
खेला चिन्हाइल ना, मन पगलाइल
उड़ि गइल चिरई ना हाथ में धराइल
अंजन रचल ना, उलटि गइल पुतरी।
#संगीत सुभाष
(?भावेश जी सुपुत्र महामना राधामोहन चौबे “अंजन” जी के पांचवी पुन्यथिति पर भावभीनी श्रद्धांजलि? )
आजु पाँचवा प्रस्थान दिवस के का कही-
जाये के बात रहे पहिले से तय दिन ,
अचके में उहो दिन आके धरनाइल,
बीतत रहे पल-पल पहाड़ नियर गिन -गिन,
खिंचते चदरिया जब पाँव थरथराइल,
जबले लुटवनी हम, खुशी बीन-बीन,
छनहीं में सपना जस, हमसे छिनाइल,
बाबुजी हारि गइनीं, जिनगी के बाजी के-
छोड़ि के पिंजरवा कहाँ, सुगना पराइल,
आँखि जवन मटकत रहे, अंजन रचाके-
आँखि सनकाहिन अब, अंजन धोवाइल,
#भावेश अंजन
(?महाकवि, महातपस्वी आ महामानव #अंजनजी खातिर भइया कन्हैया प्रसाद तिवारी रसिक जी के उद्गार?)
ध्रुवतारा जस चमकत बानीं, #अंजनजी असमान में
कवनो बात के दगदग नइखे, ए ऋषि की पहचान में
भोजपुरी क बिन्दी रहनीं, आँख क काजर तिरिया के
के नइखे जानत एह जग में, ए महान् भोजपुरिया के
शांत सुभावके,चमकत चेहरा,विमला का कर के करताल
सगरे गुन से आगर रहनीं, वाणी मधुरी रहे रसाल
गीत,गजल,गवनई गाँव के , मुखकमल हमेस निरेखत रहे
पैर के पायल बाजे खातिर, उहें की ओरिया देखत रहे
राधा मोहन रूप के जोति , मनवा मोहे लोगन के
का बतलाईं दिल के बतिया , भावे बिरहन जोगन के
“रसिक” क रसना थाकत नइखे , अंजन के गुनगान करत
हे ! रसिक ॠषि नमन बा हमरे, चरन धूरि सिर मउर करत
~ रसिक ~
अजुए के दिन भोजपुरी के पुरोधा , नर पुंगव कवि राधा मोहन चौबे अंजन जी हमनी के छोड़ के भू सेज ले ले रहीं । मय भोजपुरिया परिवार के अइसन लागल रहे जइसे भास्कर भगवान आपन दिव्य जोत के समेट लेले बाड़न। माई सुरसती के साधना मे लीन रहेवाला के चमक ओह दिन मलीन हो गइल रहे। खरवाँस बितला के अभी एको दिन ना भइल रहे तले खर समाचार सुनाई पड़ल ।
अंजन जी ब्रह्मलीन हो गये। आसपास के गाँव-जवार में जे भी सुनल दुलुकिये चाल से आँख में पानी भरले चहुँपल , आ जे ना जाये के स्थिति में रहे उनुका कठेया मार देलस । बाकी का कइल जाव विधना के रेख के मिटाई , अंजन जी के विधाता अपना महफिल में बोला लेलन। जय भोजपुरी जय भोजपुरिया उहें के प्रेरणा से बनल बा आ एह परिवार के संरक्षक के नाते हम आपन हार्दिक श्रद्धांजली अरपित करत बानी ।
कइसे करीं बतिया अबहीं अँखिया लोराइल बा
अंजन भोजपुरिया जी के याद आजु आइल बा
साजहुँ ना पवनी सूखल काजर कजरौटा
खोंता उजर गइल बदलल जब मुखौटा
सामान लेके पोटली में सुगना पराइल बा।।
लागे मनसायन नाहीं घरवा दुअरवा
चोख चटकार जइसे सूखल बा पुअरवा
गुच्छे अंगूर के दुपहरिया पझाइल बा
आइल सनेस जब संझवत सजनवा के
लागल ओहार रउए खातिर नयनवा के
हियरा हिलोर उठे शिवोऽहं तत आइल बा
~ रसिक ~
(? भोजपुरी के महाकवि अमर गीतकार राधामोहन चौबे “अंजन” जी को उनकी पुण्य तिथि पर शशिरंजन शुक्ल “सेतु” जी क भावपूर्ण श्रद्धांजलि )
?हरि: ॐ?
भोजपुरी के महाकवि अमर गीतकार राधामोहन चौबे “अंजन” जी को उनकी पुण्य तिथि पर भावपूर्ण श्रद्धांजलि????
“अंजन” जी ने लोक-शिक्षण, देशप्रेम, राजीनीतिक शुचिता, सामाजिक समरसता, अध्यात्म, भक्ति, आदि विभिन्न विषयों को केंद्र में रखकर ऐसे गीतों का सृजन किया जो सदा-सदा के लिए जन-साधारण के हृदयों में रच-बस गए। उनका गीत “भाई के दुलार” उन्हीं अमर कृतियों में से एक है, जिसे मैंने उनकी दिव्य छवि के साथ इस पोस्ट में साझा किया है। मैंने स्वयं ये अनुभव किया कि जहाँ कहीं भी भोजपुरी भाषा बोली जाती है वहाँ इनके गीत भी गाए जाते हैं। मैं अपना एक अनुभव साझा करता हूँ। 2003 में असम के सिलचर से तकरीबन 30 किलोमीटर दूर सुरम्य चाय बागानों के बीच, मज़दूरों द्वारा आयोजित एक संगीत सभा में मुझे भी कुछ गाने को कहा गया। मैंने कवि श्रेष्ठ का एक अमर गीत..”बाबू लेले जइह हमरो समान हो, कि पुछिहें जवान सुगना”… शुरू किया। दो अन्तरे गाने के बाद मैं गीत भूलने लगा… तभी साथ दे रहे हारमोनियम मास्टर जी ने ज़िम्मा सम्भाला और गीत पूरा कर दिया। उसके बाद अंजन जी का एक और अमर गीत… “बेटी भोरे भोरे जब ससुरार जइहें”…. और एक ग़ज़ल “बिजुरी में तड़प केतना बाटे, बेईमान बदरिया का जानी” की प्रस्तुति भी समूह के दो अन्य गायकों ने दी। अंजन जी जैसी साहित्यिक विभूति का क्षेत्रीय होने पर मेरे सभी क्षेत्रीय लोगों को बड़ा गर्व होता है। मैंने भी उसके पूर्व सिर्फ सुना था कि अंजन जी के गीत भोजपुरी क्षेत्रों में हर जगह गाए जाते हैं। प्रत्यक्ष इस बात की अनुभूति कर बहुत दिव्यता का आभास हुवा। हृदय उनके प्रति श्रद्धा भाव से भर उठा। उन्होंने समय समय पर हिन्दी में भी बहुत स्तरीय रचनाएँ कीं। आध्यात्मिक खंडकाव्य “शिवोहम” सम्भवतः उनके जीवनकाल में प्रकाशित उनका अंतिम हिंदी काव्य ग्रन्थ है। बहुत कुछ प्रकाशित होना अभी शेष है। महान साहित्यिक विभूति एवं मातृभाषा के अनन्य किंकर को मेरा श्रद्धापूर्ण नमन है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि वे सूक्ष्म रूप से वे मेरा मार्गदर्शन करते रहेंगे……
?? ॐ शांतिः शांतिः शांतिः??
(शशिरंजन शुक्ल सेतु जी के उद्गार। बा त हिन्दी में, बाकी प्रासंगिक बा।?)
(संगीत सुभाष जी क महामना राधामोहन चौबे “अंजन” जी के पांचवी पुन्यथिति पर भावभीनी श्रद्धांजलि )
जे आइल ऊ जाई, असली साँच ह। बाकी, जवन जगह खाली हो जाला ऊ त नाहिंए भरा पावेला। आजु से तीन बरिस पहिले #अंजनजी, आजुए का दिने पृथ्वीलोक के आपन जात्रा पूरा क के, घर- परिवार आ नेमी- परेमी सबके बताके अपना परमलोक के जात्रा पर चलि गइनीं, जहवाँ से केहू ना लवटेला।
हम सन् 1970 (माने, बारह बरिस का उमिर) से उहाँ से गीत ले लेके गावे लगनीं आ महाप्रयाण का बेरा ले नियमित दरसन करे के सौभाग्य मिलल। हमरा बुझाला कि उहाँके सब आसीरबाद हमरे खातिर जोगावल रहे। हम उहाँके बारे में कुछऊ लिखीं, सुरूज के दीया देखावल होई।
आजु ओ महामानव, महाऋषि, महातपस्वी आ महाकवि के हिरदय से चरन पूजे के मन करता, जवन खाली कल्पना में हो पाई। बस आ बस एतने से आँखि लोरा जाता कि छाछात चरन ना छू पाएब। लेकिन, हमरा पूरा बिसवास बा कि ऊ दिब्य आतमा हमेसा हमरा अगल- बगल मार्गदर्सक का रूप में ठाढ़ बा आ दिब्यलोक से हमरा साथे पूरा संसार खातिर मंगलकामना करत, आसीरबाद बरिसा रहल बा।#संगीत सुभाष
आभारी बानी कि रउआ अंजन रचवनीं,
इयाद कइनी आ सबके इयाद दिअवनी,
एतना ले परेम मिलल,मनवा अघाइल कि
नजर से नेह लागल,नाही पपनी उठवनी,
**भावेश अंजन**
महाकवि स्वर्गीय राधामोहन चौबे “अंजन जी” के पुण्यतिथि ह आज
लोर भरल श्रद्धांजलि
हमार सौभाग्य बा की 2014 में हमार अंजन जी से भेंट भइल रहे ,उहा से मिल के बहुत अच्छा लागल हूत प्रभावित भइनी भोजपुरी लिखे खातिर,फिर 2015 में हम बहिन के खिचड़ी ले के जिगिना गइल रहनी ,उहा से 2 किलोमीटर पर अंजन जी के घर बा, विहाने विहाने इहे समाचार मिलल की अंजन जी परलोक सिधार गइनी,तुरते हम आ दीदी के ससुर मोटरसाइकिल से पहुंचनी जा ,पूरा जवार के भीड़ उमड़ परल 15 जनवरी 2015 के ,फिर 12 दिन के क्रियाकर्म खतम भइल ,हमहू सऊद अरब अइनी आ मन में भाव जागल की भोजपुरी खातिर कुछ करे के चाही तबे ,जय भोजपुरी-जय भोजपुरिया परिवार के शुरुआत वाट्सप के माध्यम से भइल।
माटी का खाँटी सबदन से सजा जवन रचना महाकवि अंजन जी रचनी ओकर शानी खोजले भेंटाए आला नइखे। आदरणीय भावेश जी के दीहल किताबन के द्वारा उहाँ का बारे में बहुत कुछ जाने के मिलल।पर्ह साल गूगल पर अंजन जी सर्च कइला पर कुछ ना देखावत रहे त हमरा अचरज भइल जे अतना लम्हर कद वाला बेकती का बारे में नेट पर केहू कुछ नइखे डरले। ओकरा बाद हम वर्ड प्रेस पर उहाँ का बारे में टुटल फूटल भाषा में दू चार लाईन लिख पोस्ट कइनी। आज बहुत अच्छा लागता जे कई गो लेख उहाँ पर लिखाइल बा आ साईट पर पोस्ट भइल बा। जभो जभो परिवार गायक से पटल बा आसा बा जे उहों के गीत नयका गाएक लो गाके सचमुच श्रद्धांजलि दीही।
दिलीप पैनाली
असम
हम अंजन के छोटका बेटा श्रद्धांजलि समर्पित करत बानी। बाबूजी के एगो मुक्तक ह-
हवा के झोंक पर पतइया डोलबे करी,
…….
माई के करेजा पुत खातिर मोम होला,
बछरुवा बोली त गइया डोलबे करी।।
जहिया ले रही गंगा सरयू के पानी तहिया ले रही राउर नाँव आ निशानी !!
सादर श्रद्धॉजली….
शत शत नमन करतानी ….
शशि अनारी
करम्मर-बलिया (उ.प्र.)
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