ओढ़ के हितई क चादर बोल बोले सान से
कब मिली पलखत करेजा काट ली बरदान से
दू तरह के आदमी मिलिहें इहाँ संसार में
एक अमरित धार दी दूसर कटी ईमान से
काठ के कान्हा बनल बा रंग रोगन चटखरा
राधिका परिसान बाड़ी मुँह चिन्हउअल पान से
लोग काहें ला जिअत बा भेद गहिरा बा बहुत
तूरि के अनमोल तरई दऽ रसिक असमान से
पूर्वजन के आबरू आपन करम बा दाँव पर
शेर के छँवड़ा करत फरियाद बाटे श्वान से
आँच पो तावा धइल बा नाच पानी कर रहल
आस में बबुआ चुपाइल मन भरल पकवान से
✍️कन्हैया प्रसाद रसिक