जय माँ वागेश्वरी
जग पूजे विमला मइया के,
सुखदा यशदा वरदा नाम।
बंदन पूजन कमल चरन में,
सादर हमरो बा परनाम।।
बीणाधारी हंस सवारी,
शंभु बहिनिया विश्वा मात।
भोगदायिनी पापनाशिनी,
ब्रह्मा जिनिकर लागै तात।।
धवल वसन चंद्रिका विपासा,
देव असुर नित लावै ध्यान।
जग की जननी जगततारिणी,
भक्त पूत गावै गुनगान।।
माघ मास तिथि शुक्ल पंचमी,
बंदन पूजन करे जहान।
बदरी फल नैवेद चढ़ेला,
अच्छत धूप कसइली पान।।
मंत्र गुँजेला विद्याघर में,
जगत करे आदर सत्कार।
भगता पग में शीश झुकावै
तीन लोक में जै जयकार।।
भोगदायिनी ममतावाली,
दीन हीन जन करे पुकार।
हाथ जोरि सुत करे निहोरा,
भरदीं माते विमल बिचार।।
ज्ञानहीन भगता अमरेन्दर,
भावहीन मनई नादान।
ताल मातरा तनिक न जानीं,
ज्ञान सार दे दीं बरदान।।
शब्द सिल्प से ज्ञानहीन माँ,
लिक्खीं राउर आल्हा छंद।
हे मइयाजी बनीं सहइया,
शुद्ध शुद्ध रचवा दीं बंद।।
अमरेन्द्र कुमार सिंह,
आरा, भोजपुर, बिहार।