ना पोथी ना पतरा –
ना कुण्डली ना सुमंगली –
ना गनना ना मनना –
अब बाॅयोडाटा दिआता ।।
ना भाई ना भतीज –
ना गोतिया ना देआद –
ना बाभन ना हजाम –
अब आपन लो नेवताता।।
न गाँवें न ठाँवें –
ना घरे ना दुआरे –
ना खेते ना खरिहाने-
अब तऽ होटल लिआता।।
ना बिधि ना बिधान –
ना जंतर ना मंतर –
ना छेंका ना बरछेया –
अब तऽ इन्गेजमेंट कहाता।।
सभे एजुकेटेड हो गइल
समाज एडवांस हो गइल-
अंगुठी-
पहिले कनियादान में दियात रहे।
अब ?
अब त बिआह के पहिलहीं-
लइका – लइकी के
आ लइकी – लइका के
अंगुठी पेन्हावत बारन।
बाबू माई थपरी बजावत बारन।
बुढ़ऊ फोटो घीचावत बारन।
अब औकात नपाता-
बाकिर संस्कृति ना-पाता।
अंगुठी के अदला – बदली-
सगाई।
रोपेया के लेन – देन-
हिताई।
आ बिआह के छौ महिना पहिलहीं-
फोन लम्बर के लेन-लेन-
ई का कहाई?
अब रउये बताईं।
ई दुनिया केने जाता ?
हाय रे बिधाता।।
अमरेन्द्र सिंह
आरा