बसन्त पर दोहा

0
761

बसंती दोहा

फुला गइल बा खेत में,पीयर दग-दग फूल।
राह निहारत दिन बितल,साजन गइलें दूर।।1

तीसी सरसों खिल उठल, बहल बसंत बयार।
पिय के पाती पाइ के,हिया भइल गुलजार।।2

पवन फागुनी देखि के,हियरा झूमल मोर।
ननदो तहसे का कहीं,अइलें ना चितचोर।।3

मौसम भइल सुहावना,झूमे मोरा पाँव।
हरियर,पीयर देखि के,सुन्नर लागे गाँव।।4

गाँव जवारे में असो,चहकल खूब वसंत।
काम ठनाइल साँच के,अइलें साधू संत।।5

मन अगराइल जात बा,देखत सुन्नर रूप।
बहत बसंती साँझ के ,लागे खूब अनूप।।6

गणेश नाथ तिवारी”विनायक”
श्रीकरपुर, सिवान