प्राचीन समय में जब अँग्रेजी दवाई के प्रचलन नेपाल में ना रहे तब वैद्य (Doctor,चिकित्सक)लोग आपन अनुभव आ अनुसंधान के आधार पर बहुते बेमारी के इलाज जडीबुटी के माध्यम से ही करत रहे लोग।आज भी आयुर्वेदिक दवा, चिकित्सा के प्रचलन बा।
जडीबुटी के स्वरूप.. छोट छोट पौधा, जड़ , गाछी के फूल,फल ,काण्ड ही जडीबुटी ह। इ जडीबुटी औषधि के रूप में,श्रृंगार सामग्री,सुगंधित तेल साबुन, धूप बनाके जैविक पदार्थ के रूप में इस्तेमाल होला।
आजकाल जडीबुटी के व्यवसायिक खेती भी होखता।
नेपाल के मधेस,पहाड हिमाली क्षेत्र के पाखा,पखेरा,खोच, फाँट वनजंगल में प्रशस्ते जडीबुटी मिलेला। जइसे– सिलाजित,टिमुर, दालचीनी, तितेपाती,धतूर,बोझो, घिउ कुमारी, यार्सागुम्बा, तुलसी ,नीम आदि बाटे।
इ सब जडीबुटी के प्रशोधन क के ब्रिक्री वितरण औउरी निर्यात समेत करे से आर्थिक लाभ भी होला।
अब तनका जडीबुटी के परिचय आ महत्व—-
१.अमला- अमला जंगल औउरी भिर ,पखेरा मिले वाला गाछी ह। सबके थाह भइल बात बा की अमला में भिटामिन”सी”बहुतेरे मात्रा में मिलेला।ऐकर जड़,पत्ता, फूल, आ फल बहुत ही उपयोग होला।
आयुर्वेद में त्रिफला बनावे के बेरा अमला हर्रो आ बर्रो के प्रयोग होला। दाँत आ गिजा से खून आवे, दाँत हिले लागे, मुँह गन्हाये लागे, आ केश झड़े लागे त यी सब समस्या के उपाय अमला के विधिवत उपयोग सेबहुत फायदा होला। पेट झड़ी,कमलपित्त दमा के बेमारी में भी बहते फायदा होला।
२.घिउ कुमारी–घिउ कुमारी के पत्ता के भीतर लस्सा जइसन पदार्थ (जेली)होखेला। इ पदार्थ कौनो भी दुखाई भइल ठाँव पर रखला दुखाई ठी हो जाला।अम्लपित्त, कब्जियत, महिनावारी के समय पेट दुखइला पर मुड़ी दुखइला पर यदि ४ इंची के पत्ता के भीतर के गुदा( जेली) पानी में मिला के पिअला से आराम मिलेला।
लीवर,ब्लड प्रेशर आ चीनी (मधुमेह)के रोग में भी अचुक दवाई के काम करेला।
३.तुलसी–तुलसी के गाछी प्रायः सबके घर में रहेला ही। ऐहकर पत्ता, फूल,बिया, डारी सब उपयोगी होला।तुलसी Antiviral, Antibacterial, Antifungal गुण बाला औषधि ह। बोखार, अग्निमंदता, खून के खराबी जइसन बेमारी में उपयोगी होला।
४.नीम–इ भी सहजे हमनी के गाँव घर में लउक जाला।एहकर पत्ता, फूल बिया आ तेल के प्रयोग होला।एहू में तुलसी जइसन ही Antiviral, antibacterial, आ Anti fungal गुण होखेला। छाला के रोग, मधुमेह, खून के विकार में एहकर पत्ता के चूर्णं बड़ा ही प्रभावकारी होखेला।दाँ हिलत होखे,दाँत से खून आवत होखे मुँह गन्हाये त नीम के दतुअन जरूर प्रयोग करे के चाहीं।
५.बर्रों–इ पहाडी आ मध्य पहाडी भाग में मिलेला।लामा लामा एहकर गाछी होला। एहकर फल आ बिया दवाई के रूप में प्रयोग होला। बर्रों ब्लड प्रेशर, बोखार नियंत्रण, खाना पचाये में,अल्सर के ठीक करे मे, मुरी दुखाई ठीक करे में आ दाँत के भी मजबूत बनावे में बड़ा फायदेमंद होखेला।
६.घोडताप्रे–इ जमीन में भुइयां फइले वाला झार ह।ऐहकर पत्ता गोल होला आ बड़ा सूक्ष्म औउरी डोरा जइसन पातर होखेला। ऐहकर पत्ता दाद भइल रोगी खातिर फायदेमंद होखेला। दाद हो गइल होखे त बिहाने खलिये पेट ४-५गो पत्ता खाएके चाहीं।पेशाब में जलन होखे त एह पत्ता के मुचके रस निकाल के पानी संगे पी सकल जाता। स्मरणशक्ति बढ़ावे में भी एहकर प्रयोग बड़ा प्रभावकारी होखेला।
७.तितेपाती– इ जडीबुटी पहाडी भाग में बड़ी सुलभता से मिल जाला।एहकर पूरे पौधा ही औषधि के रूप में प्रयोग होला। विषमज्वर, आँख के दुखाई, घाव होखे त बहुत फायदा करेला। शरीर के कौनो भाग दुखात होखे त तितेपाती पका के सेकला से दुखाई ठीक हो जाला।
८.असुरों असुरों तराई से लेके पहाडी भाग के १२००मीटर तक के झाडी के रूप में आ खेत के पगडंडी पर फेन्स के रूप में लगावल देखल जा सकता।ऐकर हरिहर पत्ता मसल देहला पर गंध आवेला । पत्ता १०-१५से.मी. लामा होखेला। पत्ता आ ऐहकर फूल बहुत उपयोगी होखेला। खोकी, दमा, बोखार आदि बेमारी में फायदा करेला। साथे साथे गांव घर के किसान लोग हरिहर मल के रूप में कीटनाशक विषादी के रूप में भी उपयोग करेला लोग।
अब तनका जडीबुटी के पहचान आ जमा (संकलन)करे के तरीका समझ लेवल जाव…
कौनो भी जडीबुटी जम्मा करे के बेरा उक्त जडीबुटी के कौन भाग प्रयोग होई इ पहिचान क के आ निश्चित समय में ही जडीबुटी तुरे (टिपे)के चाही। वनजंगल में अपना मन से उपजल जडीबुटी जमा करे के बेरा ध्यान देवे खातिर तना ध्यान देवेके पड़ी—
१.जडीबुटी के रूप में कौन भाग उपयोगी बा ,इ पहिचानल जरूरी बा।
२.संकलन(जमा)करे के कौन समय उचित बा ऐहपर भी विशेष ध्यान के जरूरी बा।
३.पूरा रूप से परिपक्व भइल जडीबुटी के पेड़पौधा संकलन करे के चाही।
४. जडीबुटी जमा करे के बेरा भविष्य खातिर भी सभे जडीबुटी के जोगावे खातिर तनका मात्रा में जड़, बिया आदि छोड़ देवे के चाही। संकलन करे वाला आदमी के जडीबुटी के सब जानकारी, ज्ञान होखल भी बेहद जरूरी बा नात झारपात जडीबुटी में मिल गइला से जडीबुटी के गुणवत्ता में फरक पर जाला।
✍अनीताशाह,वीरगंज.नेपाल।