फागुन नाचत, गावत आवत।
अगुवानी में आगे-पाछे सकल चराचर धावत।
विविध रंग के फूल धरा पर,अँजुरिन छिटत, बिछावत।
गोद भरत नवकी फसिलिन के, तनमन सब हरखावत।
बाँटत, देत, लुटावत आवत।
पछुआ पर असवार घुमत नित, सभकर तन सिहरावत।
सजनाके गमछा, सजनी के अँचरा के लहरावत।
उछलत, कूदत- फाँनत आवत।
गाल लाल टेसू, गुलाब के परसि-परसि दुलरावत।
मुकुट धरत सिर ठूँठ बिरिछ के उमगि-उमगि उमगावत।
मटकत, मोद मनावत आवत।
मधुर राग होरी के टेरत, झाँझ- मृदंग बजावत।
धरनि अबीरा, कुमकुम, केशर, रंग, गुलाल गिरावत।
रस बरसावत, धावत आवत।
✍ संगीत सुभाष,
मुसहरी, गोपालगंज।