भोजपुरी सबद संपद – भाग-६

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अउङ्ह(ई)- [सं- अवाङ्] अंघी, अउँघी, उँघ।
जाङ्ह- [सं- जंघा] जांघ।
चिन्ह- [सं-चिह्न] निशान।
गफ्फा [सं- ग्रास]
चूँटी- [सं- चुण्ट धातु से – चुण्ट छेदने]
च्यूँटी। “चूँटी के पग नेउर बाजे सो
भी साहिब सुनता है।”- कबीर।
दउर- [सं- ‘धौर’ धातु से- ‘धौर गतिचातुर्ये।]
दौड़ना।
धउग- [सं- धावक] धावल।
जेवना- [सं- जिमु धातु से- ‘जिमु अदने।’]
जिमना, भोजन करना।
जड़ावर- [देशी- अजराउर] उष्ण कपड़ा।
अथाह- [देशी- अत्याह] जेकर माप के अंदाज
ना होखे।
अगाध- [दे- अत्यग्धं] अधिकता सूचक।
आपस/आपुस- [दे- अनपुसिओ] परस्पर।
हँसिया/हँसुआ- [दे- असियं]फसल काटे के
औजार।
हउआ- [दे- आहु उलूक, वर्णविपर्यय से]
हौवा। डरावे वाला जीव।खेत के
पुतुल।
उकसावल/उसकावल- [दे- उक्कासिय]
गुंडा- [दे- उक्कुडो] संस्कृत के ‘मत्त’ के
समानार्थी।
लाट- [अं-लार्ड] जइसे ‘लाटसाहेब’ में। “हुँह,
भइल बाड़े बड़का लाटसाहेब।”
[अं-प्लेट] सतह, जइसे ‘लाटफारम’ में।
“आरे, जनि कहऽ, लाटफारम प अतिना
भीर रहे कि ठाढ़ो भइल मोसकिल।”
[अं-स्लॉट] छेद, गुंजाइश निकाले के
अर्थ में। “सीट त भरल रहे बाकिर लाट
लागि गइल त टरऽके से कोलकाता चलि
गइनीं।

✍दिनेश पाण्डेय, पटना, बिहार