यार के मन खार बा बेकार के फरियाद का।
मरि गइल संवेदना तब झूठ के संवाद का।
नाम के अधिकार बा हर लोग बा लाचार में-
कायदा के मोल ना तब देस ऊ आजाद का।
लाज ना हाया तनिक अंजन लगल बा नैन में-
बोध ना निज आन के सम्मान के मरजाद का।
दंस बा भीतर भरल तब गरल का बा साँप के-
काट ले आपन अगर तब हृदय में अवसाद का।
आम पर विस्वास का खास जब धोखा दिहल
खून आपन गैर हो तब बाप के औलाद का।
स्वर्ण चानी देह में बा रंग रोगन गेह में-
दीप बाती ना जरे फिर गाँव ऊ आबाद का।
सब खजाना लूट के मन सांति ना अमरेन्द्र के
याद ना हरि नाम के अब फालतू बकबाद का।
अमरेन्द्र कुमार सिंह
आरा (भोजपुर)