दोहा
मानस में माँ सरस्वती, बइठीं आसन मार ।
शब्द ब्रह्म के रूप में, मुख से करीं उचार ।।
शैशव बालिग वृद्धजन , संगत हो सुविचार ।
मनसा वाचा कर्मणा, अंतरपट उजियार ।।
वाहन हंस विवेक के, सुनियोजित हो पाथ ।
रसिक कन्हैया दास के, सिर पो राखीं हाथ ।।
कन्हैया प्रसाद रसिक