सीली पलक पर दू बुना टंगल रहल

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भोजपुरी ग़जल

सीली पलक पर दू बुना टंगल रहल।
थिर आँखि में बीरान अस जंगल रहल।

दँवकल हवा आके अलक रुखरा गइल,
जुंबिश हलुक भर देह ओठंगल रहल।

हिरदा मधे इक आखिरी दीया जरे।
मन के सिवाले से उठत मंगल रहल।

जिनिगी गुजर के आ गइल हिहवाँ तलक,
अफसोस ई हर ठौर पर दंगल रहल।

कतिने न हमराही मुड़ाने पर मिलैं,
कइ सख्स के चोला तनी रंगल रहल।

ललसा कभी ना ऐपना रचते थकल,
अहले फजीरे पाँव से धंगल रहल।

इक गुलगुली अहसास बा चारों दने,
अकियान से देखीं धँसल खंगल रहल।


दिनेश पाण्डेय,
पटना।