कंजुस होखे त अइसन ना त ना होखे

1
1533

एक समय कंजुसी मे
मशहूर महोदय मुल्ला जी
दोसरा के रस पी जईंहें पर
आपन ना दिहें गुल्ला जी

एक बार कुछ लोग पधरले
मुल्ला जी के दुवारे
घर छोड़ के मुल्ला जी
भगले लगले बाग बहारे

शोचले घरे रहब सभे आई
जेब के दमड़ी जाई
केहु ना केहु कहबे करी
की एक कप चाय पियाईं

ए से निमन ईहंवे बाटे
चाय लागी ना पानी
कुरसी खटिया के तुरवाई
निचवे बइठतानी

एतने देर मे सारा लोग
मुल्ला के पास पहुंचले
कवना कारण आगमन भईल
मुल्ला जी तब पुछले

सभे कहल कब्रिस्तान के
रचछा कईल जरुरी बा
कब्रिस्तान के चारो ओर
बाउंडरी भईल जरुरी बा
गांव के नाते निमन बाउर के
खोज खबर त लिहल जाव
ऊहां बाउंडरी बान्हे खातिर
कुछउ चन्दा दिहल जाव

मुल्ला कहले कब्र मे जे बा उ
कसहुं बाहर आई ना
बाहर वाला जीयत भर मे
कब्र के अंदर जाई ना

चोर चोराई ना गोसयां पुछी
कईसन खबर लिहीं
ह्रदयानंद विशाल बतावअ
काहें चन्दा दिही

रचनाकार : कवि हृदयानंद बिशाल

 

 

1 COMMENT

  1. बहुत सुन्दर हास्य बा । कवि जी के धन्यवाद ई सुन्दर रचना ख़ातिर ।

Comments are closed.