जुबां परे जहर बा,
विकार बा उदर में।
दुराव के वजह से,
तनाव बा सहर में।
न नेह बा हृदय में,
न लाज बा नजर में।
न भाव बा ग़ज़ल में,
न रुक्न बा बहर में।
न बा तरे के इलिम,
तरी फँसर भँवर में।
रहे जे बात सच्चा,
छपल न ऊ खबर में।
किरोध मन भरल बा,
त गोड़ बा कबर में।
अमरेन्द्र कुमार सिंह,
आरा, भोजपुर, बिहार।