बाल कविता जाड़ा

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हाड़ कँपावे जाड़ा रानी।
बोरसी जोरे बुढ़िया नानी।।

होत पराते नाना जागे।
सनसन सनसन हावा लागे।
दरी बिछवना लेवा गुदरी-
पुअरा लेरुआ बिछे दलानी।।

चिरईं गइली निज कोटर में।
गइया बछरु सारी घर में।
सियरा बोले हुँआँ हुँआँ-
कउड़ा लागे रोज बथानी।।

मामी पारसु गोल मिठाई।
तिलकुट मेथी तिलवा लाई।
मामा अइलनि खिचड़ी लेके-
माई दाई करे चुहानी।।

माई गरमे भात बनाई।
बबुआ मामा संगे खाई।
गुड़िया मुनिया करे निहोरा-
बुढ़िया दाई कहे कहानी।।

सुखिया दुखिया पात जराई।
राजा के पल गरम रजाई।
कृषक खेत के करे सिंचाई-
कनकन लागे ठंठा पानी।।

अमरेन्द्र कुमार सिंह
आरा, भोजपुर, बिहार।