दू गो घनाक्षरी

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1-
पतली कलाई मधे चूरी बाटे लाल लाल
बिंदिया के धाह देख सुरूज लजइले ।
इचिका घुँघट पट झट देनी हटल त
देखते चनरमा लजाइ के परइले ।
गले मोतीमाला सोभे कान्ह प दुसाला सोभे
नखरा नवेली नार नयना झुकइले।
बनि-ठनि अइली ह गाँव में बिसाती धिय,
चलऽताड़ी भाव में भुनेस भरमइले ।

2-
मोगरा के फूल अस गंध पुरवाई लेली
परसत तन मन मधुप जगइले ।
सोर तीनलोक अउ चौदहो भुवन में बा
नारी के लिबास में नारायन धरइले ।
गोपिन के गायन प ठुमका लगावत खा
पारब्रह्म परमेस खूब अगरइले ।
पारिजात पुहुप के पंखुरी छिटक गिरे
जुगल जोड़ी के देखि मन हरसइले ।

✍️कन्हैया प्रसाद तिवारी ‘रसिक’