मदिरा सवैया छंद ( भोजपुरी )

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जीवन बीतत जात पिया, असरा लिहले मनवाँ तरसे ।
भीजत बा अरमान सभे, बदरा बनिके अँखिया बरसे ।
धूमिल रंग हमार भयो, सब तेज गयो लिलरा पर से ।
ता पर खूँट क गाय बनी, घर सेवत रोज रहीं डर से ।।

छेद हजार सहे लुगरी, जइसे सम जाल रहे मकड़ी ।
माँड़ मिलावल भात मिले, चख नून पिया जिभिया अकड़ी ।
पाँव क चाम फटा अइसे, जस फूटल बा पकि के ककड़ी ।
मांस बिना तन हाड़ दिखे, जस काटल बा वन में लकड़ी ।।

जेकर बाल कुमार दुखी, हम जोय हईं अइसे नर की ।
नाम लिखाइल बा हमरे, विपदा गठरी जिनगी भर की ।।
संग शराब मिलाय पियें, सुख चैन खुशी सगरो घर की ।
खेत बिकायल खेलि जुआ, छिनलें गहना अँगिया पर की ।

बाप हमार बिना समझे, तुहँसे बन्हलें करि ब्याह पिया ।
लेकिन साथ निबाहत में, सब ख्वाब जरे जस दाह पिया ।
नाहक ही अगुआ मुअना, कइलें हमसे कुछ डाह पिया ।
नेह कबो न मिले तुहँसे, हमके बस दीन्ह कराह पिया ।।

✍️हरिलाल राजभर ‘कृषक’
कुचहरा, बिजपुरा, मऊ, उ० प्र०