चतुरी कहली चान से , का कारन परिहास ?
बाड़न चान जमीन पर , आइल बा मधुमास ।।
काहें ना चहकीं अभी, सुमन सेज पो कंत ।
भलहीं सरसों खेत में , घरहीं मोर बसंत ।।
पिया हिया बन बाँसुरी, उपजे सप्तम भाव ।
कोकिल के मधु बैन से, नइखे मोर लगाव ।।
अमराई में रस चुवे, चिपचिप करे बगान ।
मोर पिया रस गागरी, फरफर उड़े बितान ।।
ए सखि साजन सूप जस, नइखे कवनो ओट ।
सारतत्व हिय भीतरी, उचिलस दाना खोट ।।
साजन अरु मधुमास के , होला सम बरताव ।
चारो ओर सुहावना, पग पग लगे पड़ाव ।।
~ कन्हैया प्रसाद रसिक ~