औकात भुलावे के परेला

1
1525

हर साल एह महीना में,औकात भुलावे के परेला,
भारतीय सभ्यता के मान रखके, ई रीत निभावे के परेला,
कुछ प्रेम निभावल जाला,चुनिंदा दुश्मन चुन के,
सचहूँ बड़ा सुन्दर हवे,महीना ई फागुन के —– 1 ।

वइसे लाल रंग ह खतरा के निशानी,सबके मुँह बतलावेला,
फागुन में दोसरा प लग के,गजबे प्यार बढ़ावेला,
अवगुण से विपरित हो जाला,रुप ले लेला गुन के,
सचहूँ बड़ा सुन्दर हवे,महीना ई फागुन के —– 2 ।

हरा रंग के बात का कहीं,रंग होखे चाहें होखे गुलाल,
जेकरा पर ना लगे रंग ई,ओकरा मन में रहे मलाल,
हरा रंग हर चीज बढ़ावे,सब लगवावे एतने सुन के,
सचहूँ बड़ा सुन्दर हवे,महीना ई फागुन के —– 3 ।

कवि लोग का करी बड़ाई, बुरबकवाे बतिआवेले,
ए फागुन के बात निराला,अपना बुद्धि से बतावेले,
संग्राम करे वाला मुहवाँ भी,चले हाथ के चुम के,
सचहूँ बड़ा सुन्दर हवे,महीना ई फागुन के —– 4 ।

✍संग्राम ओझा

Loading

Comments are closed.