घर के सभ बेकत सराहे के कहेला बावरी ।
स्नेह में पागल पपीहा कह रहल बा आव री ।।
आस में परिहास के ना मोल कवनो रह गइल ।
एक उद्गम गंग के बा एक बा गोदावरी ।।
आजु के हालात में पइसा भइल बा सारथी ।
संग देसज के मिलल सहयोग बा देसावरी ।।
पद्म ढ़ोंढी में लिये भगवान बइठस शेष पर ।
पद्म खातिर लोग इहँवा बन गइल यायावरी ।।
काम उल्टा हो रहल बा धर्म के प्रतिकूल में ।
भासकर से दुश्मनी गलबाँह दे विभावरी ।।
ए रसिक परपंच छोड़ऽ दिवस के अवसान में ।
चित्र जीवन के उकेरऽ गान बन आसावरी ।।
दिल कचोटत रह गइल बढ़वार देखत आन के ।
अब त बन जा राम के घर रासता के यावरी ।।
यायावरी = घुमंतू से संबधित
देसावरी = दूसरे देश का रहने वाला
आसावरी = एक राग
यावरी = सहायक होने की अवस्था या भाव
~ कन्हैया प्रसाद रसिक ~