सोने के हिड़ोलवा
पे काठ के ललनवा
झुलना झुलेला
सारी रात हो…
निरहू गइल बाड़े
पूरबी बनिजिया
छोड़ि के गँउआ
जवार हो…
माई बेचारी
लुगरिया के तरसेली
रोइ रोइ करेली
बिहान हो…
गुहवा में लोटेली
टुटही खटियवा पर..
भिनही से हो गइलै
साँझ हो…
चिठिया न पाती
न कउनो खबरिया
पुतरी में बसेला
परान हो…।
✍श्लेष अलंकार,
बस्ती, उत्तरप्रदेश।