लोकगीत निरगुनिया भाव

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सोना अरु चानी से चोन्हा गइली बबुनी
माया भँवजाल में बन्हा गइली बबुनी

मानुख के तन पवली राम नाम गावे के
सोरहो सिंगार में हेरा गइली बबुनी

हीरवा के हार आइल रेसम के लहँगा
कोठवा अटार में हेरा गइली बबुनी

सबका से लर जर केहू न आपन बा
मिलल नाहीं किछुओ पेरा गइली बबुनी

ऊपरे से रटत रही पियवा के ठाँव के
आइल जब बोलहटा डेरा गइली बबुनी

बाँस के सवारी बाटे चारि गो कँहरिया
जरना के भीतर गोड़ा गइली बबुनी

पाँच जन मिलिके करेले पचकरमा
अगिनी में जरि के फेंका गइली बबुनी

हाय हाय बिलाप करे बाप महतारी
बहिनी के अँखिया लोरा गइली बबुनी

झूठ के जवानी पर बहुते गुमान रहे
पाता नापाता ओरा गइली बबुनी

✍️अमरेन्द्र कुमार सिंह,
सह सम्पादक, “सिरिजन”।
आरा, भोजपुर, बिहार।