आदमी बस नाम के ही रह गइल बा आदमी

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गजल

आदमी बस नाम के ही रह गइल बा आदमी ।
बंद पेटी में सिमट के तह गइल बा  आदमी ।।

आबरू इंसाफ घर के बेपरद होता इहाँ ।
ताल ठोकत ठीक बानीं कह गइल बा आदमी ।।

साँच के धधकत अँगारा धूर में बा लटपटा  ।
झूठ के नकली निहाई  गह गइल बा आदमी ।।

बाप दादा के कमाई बंद बा बाजार में ।
अंत में खँड़हर सरीखा  ढह गइल बा आदमी ।।

आँख के सोझा लुटाता जिन्दगी के सँचल-धन ।
आह भरके बेदना सब सह गइल बा आदमी ।।

भोर के लाली न लउके दूपहर में पट खुले ।
आधुनिकता के लहर में बह गइल बा आदमी ।।

दूध में  पानी बहुत बा आ कि पानी  दूध बा ।
आन के बढ़वार देखत  डह गइल बा आदमी ।।

~ कन्हैया प्रसाद रसिक ~