प्रीत रीत विध तजि बात बतिआइना।
कविता बेतुक के रात दिन गाइना।
धधकता आग उर सुर अब बेराग बा।
नेह छोह ऊपर में केचूल में नाग बा।
मइल भरल मति में गात चमकाइना।
कविता बेतुक के रात दिन गाइना।।
बाहर में बाह बाह अंदर तबाह में।
कुफुत के साग पाके कलही कराह में।
सान सान घृणा के भात हम खाइना।
कविता बेतुक के रात दिन गाइना।।
भरल संदूक बाटे हियरा मे हूक बा।
सोना के सेज बाकि नैना न सुख बा।
काजू घोटाय नहीं साग पात खाइना।
कविता बेतूक के रात दिन गाइना।
नंगे हमाम में सँवसे समाज बा।
संगे बा हाब जाब नैना ना लाज बा।
रार बतिआइना चार लात खाइना।
कबिता बेतूक के रात दिना गाइना।।
अमरेन्द्र कुमार सिंह
आरा