कहीं ना,
कुछ बा का?
लाल चाहे पीला,
सूखल चाहे गीला,
नस-नस टूटता,
तन होता ढ़ीला।
कहाँ जाईं हम?
रउए हईं हमार आका।
कहीं ना,
कुछ बा का?
बिटोरना बतवलसि।
चहेटुआ से पूछनी।
कह के धरा देलस,
झोरा में सुथनी।
मन मार बइठल बानी
उड़े ना पताका।
कहीं ना,
कुछ बा का?
बाबूजी के जेब में
कुबेर के खजाना,
कबो-कबो क देनी
आपन मनमाना।
गोटी भिरवले बाड़े
काकी अवरी काका।
कहीं ना,
कुछ बा का?
✍️ कन्हैया प्रसाद रसिक