गजल
जबे ले ई मौसम सफा हो गइल बा।
सियासत तबे से खफा हो गइल बा।
घुकुड़ के कबो जे रहन माल चाभत,
दुलम टेंगनी के गफा हो गइल बा।
झरलि हऽ झुराइल अताई-पताई,
अलहदिन खती इस्तफा हो गइल बा।
कुहुकिनी त बोलल जिया ही दुखल हऽ,
सजन के नजर बेवफा हो गइल बा।
अबे आँखि खोललि हऽ मूनल कली ई,
लफुअवन बदे तोहफा हो गइल बा।
न गरिमा के चिंता न बाते सहज बा,
फिकिर ईजतो के दफा हो गइल बा।
जिया जार कुटनी बिलँगटे घुमत हऽ,
दलालन बदे तऽ जफा हो गइल बा।
दिनेश पाण्डेय ।