चुहवन के दोस ना , बिलइया के दोस बा ।
सिकहर पो सीढ़ी लगावे के जोस बा ।।
चरचा बा चाउर के बोरा चबावे के
रहता में रोकी तऽ गरदन दबावे के
बिलरा बेमार बाटे हाथ ना चलाई
भगतिन बिलार करस माला जपाई
भरल गोदाम के भसावे ला रोस बा ।
सिकहर पो सीढ़ी लगावे के जोस बा ।।
भइलसि जुटानी जे मूसक समाज के
लागल खुजावे लो’ पपड़ी के खाज के
मस्ती में कुछ ना बुझाइल बमक गइल
घोड़ा से गिरला प सुगना सनक गइल
मोका में मउनी बन बइठल खामोस बा ।
सिकहर पो सीढ़ी लगावे के जोस बा ।।
मन गदेगद भइल गलइचा के गच्च से
चहू चटक गइल चानी के चम्मच से
रबड़ी मलाई संग खल खल के माल बा
कहेवाला कहे कि पलटुअन के चाल बा
सूखल बा हलक हिड़ोराइल आक्रोस बा ।
सिकहर पो सीढ़ी लगावे के जोस बा ।।
कन्हैया प्रसाद रसिक