हमर अशांत मन….
हमर अशांत मन कुछ करल चाहता
आशा के बोझ तले दब छोट लइका नियन
ठूठ हो चुकल पेड़ के अंतिम सुखल पत्ता नियन
ऊपर उड़ के मस्त हवा में झूम के बहल चाहता
हमर अशांत मन कुछ करल चाहता
हो जाला दुखी कबो, कबो खिल जाला फूल नियन
कभी रुई जइसन कोमल लागे, कबो गरे लागे शूल नियन
कबो चाहे दम भर जिहीं, एक पल में मरल चाहता
हमर अशांत मन कुछ करल चाहता
चंचल मन डोलत डोलत बहुत दूर चल जाला
फेर जिये के लालसा में बन्हके, वापस लौट आवेला
कबो भविष्य, कबो भूत, कबो वर्तमान में रहल चाहता
हमर अशांत मन कुछ करल चाहता
नदी नियन बहल, तितली जइसन उड़ल
आ चाँद नियन झरल चाहता
हमर अशांत मन कुछ करल चाहता
सुजीत सिंह(शिक्षक)