तन के भीतर खार भरल अब

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तन के भीतर खार भरल अब-
मिसरी अइसन बोली बा ।
लैनू के जस जी पिघलल अब-
हिय भीतर कठगोली बा ।।

सत्य तथ्य में जीयेवाला-
लोग बाग सब हार गइल अब ।
छन छन पाला बदलेवाला-
पूज्य गले के हार भइल अब ।
ज्ञान मार्ग दरसन अब बिसरल-
होखत बस बकलोली बा ।।

भूत चढ़ल सिर भौतिकता के-
मानव धर्म निसिद्ध भइल अब ।
नाम मरल नत नैतिकता के-
दानव कर्म प्रसिद्ध भइल अब ।
लाज हया सब हाट बिकाइलि-
बाचल बस बड़बोली बा ।।

टूटि गइलि डोरी रिस्ता के-
बात बात में जुद्ध भइल अब ।
चाल भइल दोजा हिस्का के-
आन जान अवरुद्ध भइल अब ।
प्रीति रीति के गीत हेराइल-
राखल मन बमगोली बा ।।

मान बढ़लि बा अति अनीति के-
साधु संत सब गिद्ध बनल अब ।
धुआँ उठल बा बिदुर नीति के-
शकुनी सज्जन सिद्ध बनल अब ।
पंचाली के बसन खिचाइल-
कर्ण बनल हमजोली बा ।।

राज पाट अरु ठाट बना के-
जीव जनावर बुद्ध भइल अब ।
आन बान सम्मान गँवा के-
शांत चित्त मन क्रुद्ध भइल अब ।
विधि विधान विज्ञान गन्हाइल-
लागलि आँखमिचौली बा ।।

दाव पेंच अरु कूटनीति के-
चक्रब्यूह चहुँ ओर सजल अब ।
देखि देखि अपना अतीत के-
हृदय चीख चित्कार मचल अब ।
सरस राग गावे ना आइल-
तब का फगुआ होली बा।।

✍अमरेन्द्र सिंह,
आरा।

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  1. सिरिजन पत्रिका के संपादक। मंडल के बहुत बहुत आभार ।

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