भोजपुरी गजल
ओठ में आँचर दबा हँसली धनी,
बज गइल मंजीर मेखल किंकनी।
फागनी मंजर मधे उबडुब सभे
साँस थिर होखे त नू निरखल बनी।
आँखि के आवारगी में डुब रहल,
ढालवाँ वादी उरेखल कटखनी।
चंपई बा नाक के आगिल सिरा,
माँगि के सेनूर लेखल बींदनी।
कान में जइसे कि कोइल कह गइल,
पाछ के सब धुन हबेखल रागिनी।
देह के तिरिखा कही कइसे केहू?
मौन के अनुभौ परेखल जिन जनी।
दिनेश पाण्डेय,
पटना।