कथनी करनी करवट लेवे, तबो नाम सतभाखी ।
आपन सुत पनरोह बिराजे, पढ़े कबीरा साखी ।।
ए कलजुग के कवर कसैला, गटकल बा मजबूरी ।
दिल में लहके आग जुबाँ से, करे लोग मजदूरी ।।
भगती के चादर सहता बा, मँगनी रोज बँटाता ।
रघुनंदन रासन ला रोवस, परची रोज छँटाता ।।
सत्यवान के मेहर माँगस, छलबिलिया से आटा ।
बनिया बनठन चले बराती, जन के बइठे भाठा ।।
दिनकर के गरियावे खातिर, बदुरिन के मजलिस बा ।
निसिचर नैन मटक्का मारे, फुलत- फरत रंजिस बा ।।
कन्हैया प्रसाद रसिक