लाज उमड़त ह आइल त हम का करीं
तन में यौवन समाइल त हम का करीं
कल तलक बालपन में इ चहकत रहे
अब उमरिए गदाइल त हम का करीं
साँझ से भोर तक रात जोहत बितल
जब न दिअना बुताइल त हम का करीं
रोज सँवरत रहीं खूब उनकी बदे
देख केहू लुभाइल त हम का करीं
इश्क़ की आग में जे जरावे हमें
आँच उनपर धधाइल त हम का करीं
जे न समझल कबो उम्र की पीर के
अब उ खुद ही पिराइल त हम का करीं
नैन चाहत रहे कुछ बतावल मगर
बात नइखे बुझाइल त हम का करीं
रंग दुनिया क जे बा समझ ना सकल
आज दागी कहाइल त हम का करीं
प्यार बगिया न “हरिलाल” सींचत रहे
अब तड़प के झुराइल त हम का करीं
#हरिलाल राजभर ‘कृषक’
कुचहरा, बिजपुरा, मऊ, उ० प्र०