मुक्तक – संगीत सुभाष

0
598

मुक्तक

1-
पसरे मदिर गंध केहू के पइसले प,
केहू जे नगीचे त गमक उठे देहरी।

मधु बरिसावे केहू बोलत बचन जब
केहू तनि बोले छूटे तन से फुटेहरी।

किसिम-किसिम गुन ढंग के मिलत जन
गाँव कि नगर पाठशाला भा कचहरी।

केहू के अवाई जड़काला मधे धूप लगे
केहू के अवाई लगे तपती दुपहरी।

2-
संकट के शेर आइ सामने खड़ा बा जदि
भिड़हीं परत ना परात आँखि मुनले।

बतिए से बात बने, मान सनमान मिले
बनलो बिगड़ि जात बात ढेर धुनले।

सहज सरल मन अबुझ समझि लेत
कठिन लगत ढेर ज्ञान, बुद्धि, गुन ले।

मन से मिटत भेद, नेह बढ़ियात नित
घटि जात बड़ दुख कहले आ सुनले।

3-
खिलौना नेह के मिलि जा त सब दोकान का होई?

मिले  जो  प्रीत के सतुआ, पुआ पकवान का होई?

बिटोरे  के  न ललसा बा जरूरत से जिआदा कुछ,

दिखे जो चान टुक्की भर सजी असमान का होई?

4-
साँसन में जब रामहिं ना तब तेज उसाँस लिए का मिली जी?

पापन में मन रातदिना तब कीच क जीव कहाइ मरी जी।

मान क सोच करे कतनो कतनो अपमान उठाइ चली जी।

नेह क तेल परी मनदीप तबे उजियार क आस करीं जी।

5-
गाढ़  समय  में सजी  बिलाई   हितई,  मितई,  रिश्तेदारी।

धन-दउलत अछइत चहेटि दी चिन्ता, झंझट, रोग, लचारी।

धीरज, धरम-करम हऽ साथी  दुर्दिन अइले जिनिगी में,तऽ

जिनिगीके   रउरा   सइहारीं,  जिनिगी  रउराके  सइहारी।

6-
मन का भीतर मन भर बइठल इरिखा, डाह, हिनाई।

तबहूँ चाहे पा जाईं हम सहजे में ठकुराई।

नापत बा जे नियति की गति के अलगे टारि जथारथ,

साँच बाति बा एकदिन रोई, छिछिआई, घिघिआई।

7-
कवन रूप अँखियन में राखीं, कवन रूप बिसराईं हम?

लउकत  बा  ऊ सचहूँ बाटे, कवन भाँति पतिआईं हम?

अदिमी  का चेहरा पर चेहरा, चेहरा पर फिनु चेहरा बा;

सभे  देखि  ले  चेहरा  अतना  दरपन  कहवाँ पाईं हम?

8-
सूरुज, चन्दा, नीलगगन।*

परबत, धरती, मन्द पवन।

सगरे पहिले   जइसन बा,

बदलि गइल मनई के मन।

9-
कुछलोग पानी बिन मरल, कुछलोग पानी से मरल।

कुछलोग पानी का बदे अनका घरे पानी भरल।

उतरल, चढ़ल, ढरकल, बहल दुसरा के पानी देखि के,

कुछलोग के पानी मरल, कुछलोग के पानी ढरल।

10-
अमरित पवनीं बाँटि के पियनीं, जहर मिलल त अकेले।

दुनियाँ तबहूँ दोसिहा कहि-कहि, थपरी मारि हँसेले।

ना समुझे ई मोल हिरदय के तूरि-तारि के फेंके;

अब जननीं हँ, माँथ काटि के;
पाँवे के जुगवेले।

#संगीत सुभाष,
प्रधान सम्पादक,
‘सिरिजन’, भोजपुरी पत्रिका।